रीवा। ग्रामीण यांत्रिकी सेवा (आरईएस) के कार्यपालन यंत्री टीपी गुर्दवान शासकीय सेवा में रहते हुए बिना विभागीय अनुमति डिग्री हासिल करने के मामले में विवादों में फंस गए हैं। इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा की गई शिकायत पर संभागायुक्त और विभागीय मुख्यालय ने संज्ञान लिया है और नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
सूत्रों के अनुसार, करीब एक वर्ष से यह मामला सुर्खियों में है। जांच की जिम्मेदारी अधीक्षण यंत्री आरईएस को सौंपी गई थी, लेकिन समय पर रिपोर्ट न आने पर संभागायुक्त कार्यालय ने रिमाइंडर भी जारी किया। जांच में पाया गया कि गुर्दवान ने डिग्री प्राप्त करने के लिए शासन की अनिवार्य अनुमति नहीं ली थी।
टीपी गुर्दवान ने अपने जवाब में कहा है कि उन्होंने किसी भी तरह की कूटरचना नहीं की है और उनसे सहानुभूति पूर्वक विचार किया जाए। हालांकि अधीक्षण यंत्री अतुल चतुर्वेदी ने अपने अभिमत में स्पष्ट किया है कि कार्यपालन यंत्री ने शासन के नियमों का पालन नहीं किया।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गुर्दवान ने बिना सक्षम अनुमति के एएमईआई और एमए की डिग्रियां प्राप्त कीं और उन्हें शासकीय अभिलेखों में गलत तरीके से दर्ज कराया। यह कृत्य शासकीय सेवा नियमों का उल्लंघन है। अब मामला उच्च अधिकारियों के पास विचाराधीन है और जल्द ही अगली कार्रवाई तय की जा सकती है।
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प्रमुख बिंदु:
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बिना अनुमति डिग्री हासिल करना – शासन के नियमों के अनुसार, किसी भी शासकीय कर्मचारी को शैक्षणिक योग्यता बढ़ाने से पूर्व विभागीय अनुमति लेना आवश्यक होता है, चाहे वह डिग्री नियमित कोर्स से हो या पत्राचार से। गुर्दवान ने यह अनुमति नहीं ली।
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प्रक्रियात्मक चूक – डिग्री को शासन के अभिलेखों में उचित प्रक्रिया से दर्ज न कर, सीधे पहले पृष्ठ पर दर्ज करवाना “स्वेच्छाचारिता” माना गया है।
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शिकायत और जांच प्रक्रिया – सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की शिकायत पर संभागायुक्त ने जांच के निर्देश दिए थे। जांच रिपोर्ट समय पर नहीं आने पर रिमाइंडर भी जारी हुआ।
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अधिकारियों की प्रतिक्रिया – अधीक्षण यंत्री ने अपने अभिमत में नियम उल्लंघन की पुष्टि की है और यह मामला अब उच्च स्तर पर विचाराधीन है।
संभावित परिणाम:
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यदि आरोप प्रमाणित होते हैं, तो कार्यपालन यंत्री के विरुद्ध विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
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यह मामला उदाहरण बन सकता है कि शासन की अनुमति के बिना कोई भी डिग्री प्राप्त करना प्रशासनिक दृष्टिकोण से गंभीर अनुशासनहीनता मानी जाती है।