जबलपुर/रीवा। मप्र हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान पाया कि 2006 में रीवा मेडिकल कॉलेज के जिस एचओडी ने याचिकाकर्ता का मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किया था, उसी के हस्ताक्षर से 2017 में फिटनेस सर्टिफिकेट कैसे जारी हो गया। जस्टिस विवेक जैन की सिंगल बेंच ने अचरज जताया कि 11 साल तक एक ही व्यक्ति एचओडी कैसे बना रहा? रीवा मेडिकल कॉलेज की ओर से इस पर बताया गया कि 2006 में कॉलेज में मनोरोग विभाग था ही नहीं। इस पर कोर्ट भौंचक रह गई। कोर्ट ने रीवा एसपी को निर्देश दिए कि वे फर्जी हस्ताक्षर करने वाले के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज करें। कोर्ट ने उन्हें इसके लिए 10 अक्टूबर तक का समय दिया।

रीवा निवासी अर्चना आर्या की ओर से यह याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया कि उसकी नियुक्ति शिक्षा कर्मी वर्ग 3 के रूप में 2001में हुई थी। बीमारी के चलते वह 2002 से 2018 तक सेवा में हाजिर नहीं हुई। 2018 में जब वापस सेवा में ज्वाइन करने आई तो उसने 2006 का बीमारी का सर्टिफिकेट और 2017 का फिटनेस सर्टिफिकेट पेश किया। इस आधार पर उसने मेडिकल अवकाश स्वीकृत करने का आग्रह किया। लेकिन उसका यह आग्रह ठुकरा दिया गया। इस पर उसने हाई कोर्ट की शरण ली। उसने आग्रह किया कि उसके चिकित्सकीय अवकाश को स्वीकृत कर उसे नौकरी में वापस लिए जाने के निर्देश दिए जाएं।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि रीवा के एसएस मेडिकल कॉलेज में मनोरोग विभाग़ के एचओडी डॉ प्रदीप कुमार के हस्ताक्षर से युक्त दोनों प्रमाण पत्र जारी किए गए। कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताते हुए रीवा मेडिकल कॉलेज के डीन से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा था। डीन डॉ सुनील अग्रवाल ने कोर्ट में पेश स्पष्टीकरण में बताया कि रीवा मेडिकल कॉलेज में 2009 में मनोरोग विभाग का गठन किया गया, इसके पूर्व मनोरोग विभाग मेडिसिन विभाग के अंतर्गत था। इसलिए 2006 में एचओडी के रूप में डॉ प्रदीप कुमार के पदस्थ रहने का कोई औचित्य ही नहीं। कोर्ट ने डीन के जवाब पर एसपी को निर्देश दिए कि उक्त फर्जी हस्ताक्षर करने वाले के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज कर 15 दिन में कोर्ट के रिपोर्ट पेश की जाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की 15 साल की अनुपस्थिति को नौकरी से निकाले जाने के लिए उचित कारण मानते हुए याचिका निरस्त कर दी।

Share.
Leave A Reply