रीवा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रीवा में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य परिषद के १७वें राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारंभ किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि सत्य और साहित्य का सामंजस्य विज्ञान से भी बढ़कर है। इसलिए साहित्य का समाज में बड़ा योगदान है। आत्मबोध से विश्व बोध की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जो खुद को भूल जाता है उसे दुनिया भी भुला देती है। आत्मबोध जागृत न रहे तो समाज भटकता है और राष्ट्र पिछड़ता है, सभ्यता अंधकार में डूबने लगती है।
जब आत्मबोध और आत्मशक्ति क्षीण होने लगती है तब हम पराभव की ओर जाते हैं। ऐसे में राष्ट्र गुलामी की जंजीरों में जकड़ जाता है। देश में सदियों की पराधीनता में भी साहित्य ने बौद्धिक चेतना और सांस्कृतिक मूल्यों का दीप जलाए रखा। गुलामी के समय हमारी भाषाओं, परंपराओं और प्राचीन सभ्यताओं पर सवाल उठाए गए ताकि हम अपने आप को भूल जाएं। भारत की सांस्कृति सभ्यता की अनूठी विशेषता है कि यह अंधकार में डूबकर भी प्रकाश की खोज नहीं छोड़ता।
आजादी के बाद भारत अपनी जड़ों से जुड़ रहा है, आत्मबोध को पुनस्र्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। पूर्व राष्ट्रपति ने रीवा के महाराजा विश्वनाथ सिंह को भी याद किया और कहा कि हिन्दी में पहला नाटक लिखकर साहित्य को नई दिशा दी। साथ ही कहा कि विंध्य क्षेत्र साहित्य और साधना का संगम है। इस दौरान उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने साहित्य समाज का दर्पण होता है, रीवा में राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम ने गरिमा बढ़ाई है। वंदे मातरम के डेढ़ सौ वर्ष पूरे होने के दिन यह कार्यक्रम यादगार रहेगा। इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष डॉ.सुशीलचंद्र त्रिवेदी, राष्ट्रीय महामंत्री ऋषि कुमार मिश्रा, पवनपुत्र बादल, श्रीधर पराड़कर, रीवा के शिक्षाविद डॉ. बीएन त्रिपाठी के साथ ही सांसद जनार्दन मिश्रा, मऊगंज विधायक प्रदीप पटेल, जिला पंचायत अध्यक्ष नीता कोल सहित अन्य मौजूद रहे।
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भाषाओं को जोडऩे का काम करे साहित्य परिषद
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि भारतीय भाषाओं को लेकर भ्रम की स्थितियां पैदा की जाती हैं। खासतौर पर हिन्दी को लेकर दूसरे भाषा क्षेत्रों में द्वेष पैदा किया जा रहा है। हिन्दी क्षेत्रीय भाषाओं का अस्तित्व मिटाने वाली भाषा नहीं बल्कि उनको भी संरक्षित करने वाली है। भारत की हर भाषा में श्रेष्ठ साहित्य रचनाओं का भंडार है। इसलिए अखिल भारतीय साहित्य परिषद सभी भाषाओं के आपस में अनुवाद की दिशा में काम करे, जिससे पूरे देश का साहित्य एक हो सके।
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बोले, एडमिरल को देखकर ह्वाइट टाइगर की याद आती है
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि रीवा के सैनिक स्कूल से पढ़े देश के सेनाध्यक्ष उपेन्द्र द्विवेदी और नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी अच्छे अधिकारी हैं। उन्होंने कहा कि दिनेश त्रिपाठी सफेद ड्रेस में रहते हैं, उन्हें देखकर सफेद बाघों की धरती विंध्य की याद आ जाती है। विंध्य के साहित्य और परंपराओं को आदर्श बताया।
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मोबाइल के रील्स ने पढऩे की आदत खत्म कर डाली : पाटिल
महाराष्ट्र से आए वरिष्ठ साहित्यकार विश्वास महिपति पाटिल ने कहा कि समाज और साहित्य की नब्ज परखने के लिए सर्वे किए जाते हैं। जिसमें यह बात सामने आई है कि अधिकांश लोग अनिद्रा के शिकार हैं। मोबाइल में आए रील्स ने पढऩे की आदत को लगभग समाप्त कर दिया है। पहले के लोग सोने से पहले किताबें पढ़ते थे तो अच्छी नींद आती थी। कुछ वर्ष पहले तक रेलगाड़ी के डिब्बे चलित वाचनालय नजर आते थे, अब वह दृष्य नहीं दिखता। पाटिल ने कहा कि सरस्वती केवल हिन्दुओं की देवी नहीं हैं, बल्कि दुनिया के कई देशों में अलग-अलग नाम से उन्हें शिक्षा के नाम पर पूजा जाता है। उन्होंने कहा कि महर्षि ब्यास और बाल्मिकी द्वारा रचित साहित्य शदियों के बाद भी अखंड है। पाटिल ने एक कहानी भी सुनाई कि पुस्तकें लिखकर आई राशि से एक बंगला बनाया था, उस दौरान एक साधु ने कहा कि इस मकान में लाखों-करोड़ों की गिनती होगी। उनके कहे अनुसार गिनती तो हो रही है, लेकिन अब मकान को किराए पर बैंक को दे रखा है।




