50 years of Emergency completed in the country, know the story of that period
रीवा। देश के लोकतांत्रिक इतिहास का विवादास्पद दौर जब आपातकाल लागू कर विरोध में बोलने वालों को जेल भेजा जा रहा था। उस समय रीवा के नेताओं और छात्रों ने आगे आकर विरोध किया जिसके बदले सैकड़ों की संख्या में लोगों की गिरफ्तारी की गई। जेल में ले जाकर प्रताडऩा दी गई। 25 जून 1975 को लगे आपातकाल के अब 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं।
उस दौर में लोकतंत्र को बचाने के लिए खुद की परवाह किए बिना लोगों ने आवाज उठाई और उन्हें मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) के तहत गिरफ्तार किया गया था।
रीवा में जेल में बंद किए गए क्रांतिकारियों ने प्रताडऩा का विरोध किया तो तत्कालीन कलेक्टर धर्मेन्द्र नाथ पहुंचे और अभद्रता पूर्वक बर्ताव किया। इसके बाद जेल के भीतर ही क्रांतिकारियों ने कलेक्टर की पिटाई कर दी। कपड़े फाड़ दिए गए, जिसके बाद बौखलाए कलेक्टर ने लाठी चार्ज करा दी, जिसमें बड़ी संख्या में लोग चोटिल हुए। कुछ क्रांतिकारी अब भी मौजूद हैं, जिनका कहना है कि उस दर्द को नहीं भूल सकते।
मीसाबंदियों का कहना है कि उस समय सरकार के विरोध में न कोई सार्वजनिक रूप से बोल सकता था और न ही कुछ लिख सकता था। अखबारों की स्वतंत्रता को रोककर सरकार के हिसाब से खबरें छपवाई जा रही थी। देशभर में मीसा कानून का विरोध किया गया, इस आंदोलन की आग रीवा में भी भड़की, यहां जमकर बवाल हुए। लोगों को गिरफ्तार किया गया। उस दौर के नेताओं के साथ ही छात्रों ने भी बड़ा आंदोलन चलाया और गिरफ्तारियां दी।
उस दौर के आंदोलन के 50 वर्ष पूरे होने पर आंदोलनकारियों ने अपना अनुभव साझा किया है। आंदोलन के दौरान छात्र रहे सुभाष श्रीवास्तव ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला 12 जून 1975 को आया, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली चुनाव को अवैध करार दिया गया। छह वर्षों तक चुनाव लडऩे पर रोक लगी। इसी के 13 दिन बाद आपातकाल लगाया गया। यह तानाशाही का प्रतीक था, जिसमें नो अपील, नो वकील, नो दलील का फार्मूला अपनाया जा रहा था। मीसा कानून में गिरफ्तार व्यक्ति अदालत में अपील नहीं कर सकता था। रीवा के मीसाबंदियों का कहना है कि वह द्वितीय स्वतंत्रता आंदोलन था।

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मीसाबंदियों की जुबानी, आंदोलन की कहानी
चार महीने नहीं मिला था इलाज
दो जुलाई 1975 को शहर के ढेकहा में आंदोलन चल रहा था, उसी दौरान गिरफ्तारी हुई। प्रताडऩा ऐसी की कान से खून निकलने लगा, जेल में चार महीने तक दवाएं नहीं दी। साथियों ने अनशन किया तो बड़ी मुश्किल से इलाज शुरू हुआ। आज भी कान में समस्या है। 17 महीने 13 दिन जेल में रखा और प्रताडऩा देते रहे। वह दौर ऐसा था कि सत्तारूढ़ व्यक्ति किसी मीसाबंदी की हत्या कर दे तो मुकदमा नहीं होता था। लोकतंत्र यदि बचा है तो मीसाबंदियों के संघर्ष और जनता का सहयोग अहम है। आज समाज के अंतिम छोर का व्यक्ति भी बराबरी के दर्जे पर है।
जनार्दन मिश्रा, सांसद(मीसाबंदी)
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अलीगढ़ से ही शुरू कर दिया था विरोध
यमुना प्रसाद शास्त्री की आंखों का इलाज कराने अलीगढ़ गया था, उसी दौरान आपातकाल की घोषणा हो गई। जहां रुके थे, वहीं बाहर दीवार पर सरकार के इस कदम का विरोध दर्ज कराया। दूसरे दिन पुलिस पहुंची शास्त्री से पूछताछ हुई। शास्त्री ने हमें चिट्ठी देकर रीवा भेजा और कहा आंदोलन चलाना, यहां कुछ नेता पक्ष में थे कुछ चाहते थे शांत रहें। हम सबने 30 जून को बड़ा आंदोलन करनी की तैयारी की, इसके पहले 29 जून को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में प्रताडि़त किया जाता रहा। 2 फरवरी 1977 को जेल से बाहर आया। अब अघोषित आपातकाल चल रहा है।
बृहस्पति सिंह, मीसाबंदी
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काला झंडा दिखाया तो गिरफ्तारी
मीसा एक्ट का विरोध रीवा में तेजी से हुआ। पद्मधर पार्क में रूसी दूतावास के प्रभारी का १८ सितंबर को कार्यक्रम था। वहां जाकर काला झंडा दिखाया और वापस जाने के नारे लगाए तो गिरफ्तार किया गया। १२ दिसंबर १९७७ को रिहा हुए था। यह जरूर था कि छात्रों को परीक्षा देने का मौका दिया जा रहा था। संविधान के साथ जो उस समय हुआ था, वर्तमान में कम नहीं है। अब अघोषित इमरजेंसी है, कोई बोल नहीं पा रहा है। संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है।
रामायण पटेल, मीसाबंदी
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रीवा मीसा आंदोलन का बड़ा केन्द्र था
सत्ता में बने रहने की सनक के चलते आपातकाल देश में लगा। इसके पहले से ही सरकार के विरोध में आंदोलन शुरू हो गए थे। हम लोग छात्र थे, आंदोलन करते थे। रीवा मीसा आंदोलन का बड़ा केन्द्र था, जेल में हम लोगों ने अनशन शुरू किया तो तत्कालीन कलेक्टर धर्मेन्द्रनाथ पहुंचे थे,उनके साथ हाथापाई हुई तो बंदियों को जमकर प्रताडि़त किया गया। उस दौर की तरह ही वर्तमान में भी सत्ता का हाल है। जन आवाज को दबाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। 50 साल बाद भी पूरी तरह लोकतंत्र मजबूत नहीं हुआ है।
सुभाष श्रीवास्तव, मीसाबंदी
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25 जून 1975 को लगा आपातकाल संविधान के दुरुपयोग का उदाहरण था। नागरिकों को बिना मुकदमा जेल में डालना आज़ादी पर सीधा हमला था। हम सबने रीवा में भी विरोध किया तो सीधे जेल में डाला गया। वहां भी प्रताडि़त किया जाता रहा। जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति आंदोलन व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई थी, जो अब भी अधूरी है। सत्ता बदलती है, लेकिन व्यवस्था जस की तस बनी हुई है। अब भी देश में अघोषित आपातकाल जैसी स्थितियां भी चिंता का विषय हैं। लोकतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए सशक्त विपक्ष और जागरूक नागरिक जरूरी हैं।
अजय खरे, मीसाबंदी